शारीरिक शिक्षा सुनते ही मनुष्य समझ जाता है कि मानव शरीर के विषय में बात हो गी। हमारा शरीर ईश्वर का दिया हुआ सब से हसीन तोहफ़ा है। इसकी हिफ़ाज़त करना हमारी सब से बड़ी ज़िम्मेदारी है। हम अपने शरीरी को स्वस्थ रखने के लिए जिस क्रिया का पालन करते हैं उसे शारीरिक शिक्षा कहते हैं।
हम लोगों ने स्कूलों में सुना और लिखा हुआ देखा है की स्वास्थ ही धन है। यह बिलकुल सही है। यदि हमारा शरीर स्वस्थ न हो तो हम किसी भी क्षेत्र में सफलता की ऊंचाई तक नहीं पहुँच सकते। शारीरिक शिक्षा से मानसिक शक्ति का विकास होता है, सौंदर्य में निखार तथा रोगों का निवारण होता है। कंप्यूटर शिक्षा के विषय में यहाँ पढ़ें।
यदि हम इसके महत्व को न समझें और हमें इसका सही ज्ञान न हो तो हम अपने शरीर की देख भाल ठीक से नहीं कर पाएंगे। और हमारा शरीर स्वस्थ नहीं रह पाएगा। आईए इसका महत्व, ज्ञान, लाभ आदि की चर्चा विस्तार से करते हैं।
पुराने ज़माने में शारीरिक शिक्षा
पुराने ज़माने में भी शारीरिक शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता था। उस समय लोग देशी कसरत किया करते थे। प्राचीन काल में शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य केवल शरीर को मज़बूत करना होता था। उस समय लोग बोझ ढ़ोने, शिकार करने, लकड़ी काटने, युद्ध करने आदि के लिए अपने शरीरी को मज़बूत बनाते थे। तीर अंदाज़ी, तलवार बाज़ी, घुड़सवारी, देशी व्यायाम,कुश्ती आदि शारीरिक शिक्षा में शामिल था।
जैसे-जैसे लोग विकास करते गए शारीरिक शिक्षा का उद्देश्य भी विकसित होने लगा। सभ्यता के साथ-साथ शारीरिक शिक्षा के तरीक़ों में भी विकास हुआ। प्राचीन काल में साधारण परिवार के बच्चों के साथ ही राजा-महाराजा के बच्चे भी गुरूकूल में शारीरिक शिक्षा प्राप्त करते थे।
चीन में बिमारियों का ईलाज के लिए व्यायाम में भाग लिया जाता था। ईरान में युवकों को घुड़सवारी एवं तीरंदाजी की शिक्षा दी जाती थी। यूनान में खेल कूद की प्रतियोगता को बहुत महत्व दिया जाता था। अरब में तीरंदाज़ी, घुड़सवारी, नेज़बाज़ी और तलवार बाज़ी सिखलाई जाती थी।
भारत में शारीरिक शिक्षा के क्षेत्र में भारतीय व्यायाम का प्रमुख स्थान है। यह विश्व की सबसे पुरानी व्यायाम प्रणाली है। जिस समय यूनान, स्पार्टा ओर रोम में शारीरिक शिक्षा की शुरुआत हो रही थी उस समय भी भारत में शारीरिक शिक्षा का ढाँचा बन चुका था ओर उस ढाँचे का प्रयोग भी हो रहा था।
आश्रमों तथा गुरुकुलों में छात्रगण तथा अखाड़ों और व्यायामशालाओं में गृहस्थ जीवन के प्राणी उपयुक्त व्यायाम का अभ्यास करते थे। इन व्यायामों में दंड-बैठक, धनुर्विद्या, मुष्टी, इत्यादि प्रक्रियाएँ प्रमुख थीं।
भारतीय व्यायाम की सब से बड़ी खूबी यह है कि इस से ध्यान एकाग्र, मन शांत तथा स्मरण शक्ति का विकास होता है। इसी विशेषता से आकर्षित होकर अन्य देशों में इन व्यायामों का बड़ी तीव्र गति से प्रचार और प्रसार हो रहा है।
वर्तमान समय में शारीरिक शिक्षा
विद्यार्थी जीवन में शारीरिक शिक्षा का महत्व
वर्तमान समय में पूरी दुनियाँ में शारीरिक शिक्षा को बहुत महत्व दिया जाता है। स्कूलों में भी शारीरिक शिक्षा पर बहुत बल दिया जाता है। शारीरिक शिक्षा से क्षात्रों का सर्वांगीण विकास होता है। खेल भी शारीरिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण अंग है।
सभी स्कूलों में बच्चों को खेलने के लिए प्रोत्साहित किया जाता है। अब स्कूलों में खेल के अलावा व्यायाम भी करवाया जाता है। बहुत से स्कूलों में कराटे, जुड़ो और कुश्ती आदि की अच्छी व्यवस्था की गई है।
जुड़ो, कराटे और कुश्ती आदि सिखने से शरीर बलवान होता है। शरीर चुस्त एवं फुर्तीला रहता है। इन शारीरिक शिक्षाओं को ग्रहण करने के बाद बच्चे और बच्चियाँ अपनी आत्म रक्षा करने में सक्षम होते हैं। शारीरिक शिक्षा से बच्चों में आध्यात्मिक और बौद्धिक क्षमताओं का निरंतर विकास होता रहता है।
शिशु की शारीरिक शिक्षा
बच्चा जब छोटा होता है तब तेल से उसके पुरे शरीर की मालिश की जाती है। बच्चों के शरीर की मालिश करना भी शारीरिक शिक्षा अर्थात व्यायाम ही है। इसके अतिरिक्त बच्चों का हाथ पकड़ कर चलने का अभ्यास करवाना एक शारीरिक शिक्षा है। छोटे-छोटे खिलौनों से खेलना, हाथ पाँव को हरकत कर खेलना आदि शारीरिक शिक्षा में शामिल है। इन खेलों से बच्चों का शरीर मज़बूत तथा मानसिक विकास होता है।
आम जीवन में शारीरिक शिक्षा का महत्व
आम जीवन में भी शारीरिक शिक्षा का बहुत महत्व है। आज के इस व्यस्त जीवन में लोगों को अपना काम ठीक ढंग से करने और अपना शरीर स्वस्थ रखने के लिए शारीरिक शिक्षा का ज्ञान होना अति आवश्यक है।
इस शिक्षा का ज्ञान बचपन से ही आरम्भ होना अति आवश्यक है। अब लोग इसके के प्रति जागरूक हो रहे हैं। अपने बच्चों को इसके लियर प्रोत्साहित करते हैं। अब बच्चों को आसानी से शारीरिक शिक्षा का ज्ञान मिल पा रहा है।
वयस्कों में अभी भी पूर्ण रूप से इसके लिए जागरूकता नहीं आई है। इसका प्रमुख कारन आज का व्यस्त जीवन है। खास कर ग्रामीण क्षेत्रों में शारीरिक शिक्षा के प्रति वयस्कों में जागरूकता की बहुत कमी है। गाँव में व्यायाम के साधनों की बहुत कमी है। न ही जिम की व्यवस्था है और न ही जुड़ो कराटे सीखने की।
जिम
शहरों में जिम की उचित व्यवस्था है। ऐसा हॉल जहाँ व्यायाम करने के लिए कई प्रकार के उपकरण होते हैं और लोग वहाँ व्यायाम करते हैं, जिम कहलाता है। शहरों में बहुत सारे लोग जिम जाकर व्यायाम करते हैं। जिस से उनका शरीर मज़बूत होता है। और बहुत सी बिमारियों से बचे रहते हैं।
शहरों में भी ज़्यादातर लोग जिम नहीं जा पाते हैं। इसका मुख कारण व्यस्त जीवन हो सकता है। लोग अपने जीविकार्जन में इतने व्यस्त होते हैं कि व्यायाम के लिए समय नहीं निकाल पाते हैं। हमारा शरीर भगवान का दिया हुआ एक हसीन तोहफा है हमें इसकी हिफाज़त के लिए समय निकलना चाहिए।
योग
आज-कल लोग तरह-तरह की बिमारियों का शिकार हो रहे हैं। यदि हम निरंतर व्यायाम करें तो बहुत सी बिमारियों से बचे रहेंगे। शारीरिक शिक्षा में योग का बहुत बड़ा महत्त्व है। पिछले कुछ वर्षों से योग को बहुत महत्त्व दिया जा रहा है।
योग के द्वारा हम सभी प्रकार की बिमारियों से बच सकते हैं। योग के द्वारा बिमारियों का ईलाज भी किया जा रहा है। योग सभी उम्र के लोग आसानी से कर पाते हैं। आज कल भारत में बच्चे, व्यस्क, वृद्ध एवं महिलाएँ सभी योग के प्रति जागरूक हो रहे हैं। और बहुत सरे लोग योग करना पसंद करते हैं।
ना केवल भारत में बल्कि पुरे संसार में योग को बहुत महत्व दिया जा रहा है। इसका श्रेय बाबा रामदेव को जाता है। बाबा रामदेव आज के युग के योग गुरु मने जाते हैं। उन्हों ने योग के प्रति सारी दुनिया को जागरूक किया है।
जुड़ो-कराटे
जुड़ो-कराटे भी शारीरिक शिक्षा का एक महत्वपूर्ण प्रणाली है। बिना किसी उपकरण के जुड़ो-कराटे के द्वारा शरीर को बलवान बनाया जाता है। यह आत्म रक्षा की एक उच्चतम शैली है। शहरों में इसकी अच्छी व्यवस्था है।
हम सब को किसी न किसी रूप में निरंतर व्यायाम करते रहना चाहिए।
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